my writing journey - 1 in Hindi Biography by Kishanlal Sharma books and stories PDF | मेरी लेखन यात्रा - 1

Featured Books
  • నిరుపమ - 10

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 9

                         మనసిచ్చి చూడు - 09 సమీరా ఉలిక్కిపడి చూస...

  • అరె ఏమైందీ? - 23

    అరె ఏమైందీ? హాట్ హాట్ రొమాంటిక్ థ్రిల్లర్ కొట్ర శివ రామ కృష్...

  • నిరుపమ - 9

    నిరుపమ (కొన్నిరహస్యాలు ఎప్పటికీ రహస్యాలుగానే ఉండిపోతే మంచిది...

  • మనసిచ్చి చూడు - 8

                     మనసిచ్చి చూడు - 08మీరు టెన్షన్ పడాల్సిన అవస...

Categories
Share

मेरी लेखन यात्रा - 1

मेरा जन्म कृषक परिवार में हुआ था।पुश्तेनी पेशा खेती था।लेकिन बाद में सर्विस में भी आने लगे थे।मेरे बड़े ताऊजी रेलवे में ड्राइवर थे।उनसे छोटे खेती सम्हालते थे।उनसे छोटे हेड मास्टर थे।और मेरे पिता रेलवे पुलिस मेंथे।मेरा जन्म गुजरात राज्य के मेहसाणा में 1950 में हुआ था।
मेरे पिता का साल दो साल में ट्रांसफर होता रहता था।इसलिए मेरी शिक्षा अलग राज्यी के अलग शहरों में हुई। क्लास तीन तक मे जामनगर और राजकोट में हुई।क्लास चार मैने बांदीकुई में पढ़ी।क्लास पांच अछनेरा में और क्लास छ और सात बांदीकुई में क्लास आठ और नौ अजमेर में क्लास दस ब्यावर में क्लास गयारह आबूरोड में फिर बी एस सी प्रथम और द्वितीय वर्ष जोधपुर में यह पिता की म्रत्यु की वजह से अधूरी रह गई।और मुझे अनुकम्पा के आधार पर रेलवे में नौकरी मिल गयी।सर्विस में आने के बाद मैने सेंट जोहन्स कॉलेज आगरा में बी ए में एड्मिसन लिया और बी ए किया।फिर आगरा कॉलेज में लॉ में एड्मिसन लिया।लेकिन मुझे इसमें रुचि नही थी।इसलिए फर्स्ट सेमेस्टर के बाद छोड़ दिया।
अब लेखक बनने से पहले
जब मैं अजमेर में क्लास आठ में पढ़ रहा था।तब मुझे अखबार पढ़ने का शौक लगा।अजमेर से दैनिक नवज्योति निकलता था।उन दिनों छः पैसे का आता था।अखबार पढ़ने का ऐसा शौक लगा कि दिनचर्या का अंग बन गया।जब मैंने दसवीं पास कर ली।तब पत्रिकाएं पढ़ने की आदत पड़ी।सरिता,मुक्ता,साथी,अरुण,हिंदुस्तान और धर्मयुग पढ़ने लगा।ग्याहरवीं पास करने के बाद उपन्यास पढ़ने का शौक लगा।गुलशन नंदा,कृष्ण चन्दर,प्रेम चंद,शरत चन्द्र,आचार्य चतुरसेन,टॉल्सटॉय,गोर्की,जय शंकर प्रशाद, अमृता प्रीतम,ओम प्रकाश शर्मा,राजेन्द्र सिंह बेदी,कमलेश्वर आदि अनेक लेखकों के उपन्यास किराये पर लेकर पढ़े।एक एक दिन में दो उपन्यास भी मेने पढ़े।निराला,महादेवी,पन्त,महावीर प्रशाद, रांगेय राघव,रविन्द्र नाथ आदि अनेक लेखकों की कहानी,कविताएं,लेख आदि पढ़े।पौराणिक गर्न्थो में भी अनेक ग्रन्थ पढ़े।जासूसी उपन्यास भी मैने खूब पढ़े और एडल्ट साहित्य भी खूब पढा।मिंटो को भी पढ़ा।पढ़ने में शुरू से ही रुचि थी। और फिर 1973 में। शादी हो गयी।
पढ़ने के बाद मन मे लिखने का विचार आया ।प्रयास भी किया लेकिन कुछ लाइन से ज्यादा नही लिख पाता था।सन 1977 मैं कोई पत्रिका पढ़ रहा था।उसमें कहानी लेखन महाविद्यालय अम्बाला छावनी का विज्ञापन छपा था।उसे पढ़कर मैने पत्र लिखा।और जैन साहिब का पत्र आ गया।और जैन साहिब के निर्देशन में कहानी लेखन का पत्राचार पाठ्यक्रम शुरू हो गया।और डॉ महाराज कृष्ण जैन मेरे गुरु बन गए।हर सप्ताह पाठ आते थे।जिन्हें पढ़कर धीरे धीरे आगे बढ़े और पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद "राशिफल"रचना दिल्ली से निकलने वाली"दीवाना तेज"और दूसरी रचना "वासना" आज़दलोक पत्रिका में छपी।दोनो ही पत्रिकाओं से पारिश्रमिक भी मिला था और इस तरह मेरे लेखन की शुरुआत हुई।जैन साहिब का मार्गदर्शन लगातार मिलता रहता था।वह छपने के गुर और कौनसी रचना कहां भेजनी है इस बारे में भी बताते रहते थे।
और तभी जैन साहिब के कहने पर मैने अपनी रचनाये कजरारी पत्रिका जो दिल्ली में त्रिनगर से निकलती थी मे भेजना शुरू किया और इसमें मेरी रचनाये छपने भी लगी।लेखन शुरू हुआ तो रुका नही।ड्यूटी की व्यस्तता की वजह से धीमा पड़ गया हो लेकिन आज तक रुका नही।
और एक दिन शाम का समय अचानक एक युवक मेरे घर आकर मुझसे बोला,"आप किशन लाल शर्मा है?"